सवालिया निशान
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एक दिन राजा को एक निशान मिला ,
ऐसा लगा उसे की कौनसा भगवन मिला,
खूब गले लगे, झबड़ा फाड मुस्कुराये,
बागो में बहार आयी, गुलशन में हर, फूल खिला ।।
एक बंदा फोटो खींचने चला आया,
राजा ने निशान को दूर सरकाया,
कहा क्या कर रहे हो जो,
मेरे और कैमेरे के बीच आ रहे हो ।।
बहरहाल बड़ी हसीं मुलाक़ात हुवी,
रात गयी और बात गयी,
आज गले मिलने वाले दामन छुडा रहे है,
पहले आमंत्रण भेजते थे, अब समन भिजवा रहे है ।।
राजा ने है चुप्पी साधी,
हम कभी गले नहीं मिले, कह रही है केबिनेट आधी,
चरित्र अपना तो साफ़ है जी,
सामने वाले है अपराधी ।।
राजा और प्रधान सोच रहे है,
पिछली बार जो अपनी बातो में आ गए थे,
अब भी दिखायेंगे वही भक्ति,
बाकी जनता खामोश रहेगी,
चुप चाप आधार बनवायेगी,
ATM की कतार में अपना दम तोडेगी ।।
भूल गए है वो,
तख्त पलटने में देर नहीं लगती है,
बार बार झुमलो से आकर्षित नहीं होती है
जनता की लाठी खामोश होती है ।।